By-Jitendra Pratap Singh @jpsin1 –
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मल्लिकार्जुन खड़गे आज एक सभा में कह रहे हैं कि मेरी मां को जिंदा जला दिया गया मेरी तीन बहनों को जिंदा जला दिया गया मेरे चाचा को जिंदा जला दिया गया मेरे भाई को जिंदा जला दिया गया सिर्फ मैं और मेरे पिताजी बचे
फिर आगे कहते हैं मैं यह नहीं बताऊंगा कि मेरे समूचे परिवार को किसने जिंदा जलाया
खड़के जी आप बताने की हिम्मत इसलिए नहीं कर रहे हैं क्योंकि आपको वोट बैंक प्यारा है
मल्लिकार्जुन खडगे की सगी मां और बहन चाचा को हैदराबाद के निजाम के रजाकारों ने जिंदा जला कर मार डाला था
निजाम के राजकरो ने सिर्फ दलित मल्लिकार्जुन खड़गे के समूचे परिवार को जिंदा नहीं जलाया बल्कि अपने क्षेत्र में आने वाले हजारों दलितों के पूरे के पूरे गांव को जिंदा जलाकर मार डाला था
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने ऐलान किया कि मेरे दलित भाइयों निजाम का राज्य छोड़कर दूसरे राज्य में भागों लेकिन अपना धर्म परिवर्तन करके मुसलमान मत बनना
मल्लिकार्जुन खरगे ने अपनी मां और बहन को आंखों के सामने जिंदा जलते हुए देखा, लेकिन वह कुछ नहीं कर सके थे। हैदराबाद के निजाम के रजाकारों (एक निजी सेना या मिलिशिया) ने उनके घर को जला दिया था। 1948 में हुई इस दुखद घटना का अभी तक खुलासा नहीं हुआ था। मल्लिकार्जुन खरगे के बेटे प्रियांक ने एक न्यूज चैनल से बातचीत के दौरान इस वाकये का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि कैसे उनके पिता मल्लिकार्जुन और दादा मपन्ना उस हादसे में बच गए।
प्रियांक खड़गे ने बताया कि निजाम के रजाकारों ने पूरे क्षेत्र में तोड़फोड़ की, लूटपाट की और घरों पर हमला किया, जिसे तब हैदराबाद राज्य कहा जाता था। भालकी, कर्नाटक के आधुनिक बीदर जिले में महाराष्ट्र तक के कई अन्य गांवों की तरह घेराबंदी के अधीन था। प्रियांक बताते हैं कि मेरे दादाजी खेतों में काम कर रहे थे। तभी एक पड़ोसी ने उन्हें बताया कि रजाकारों ने उनके टिन की छत वाले घर में आग लगा दी है। रजाकार देखते ही देखते हर गांव पर हमला कर रहे थे। वे चार लाख की मजबूत सेना थे और अपने दम पर काम कर रहे थे क्योंकि उनके पास कोई नेता नहीं था। मेरे दादाजी घर पहुंचे, लेकिन केवल मेरे पिता को बचा सके, जो उनकी पहुंच के भीतर थे। मेरी दादी और चाची को बचाने में बहुत देर हो चुकी थी, जिनकी त्रासदी में मृत्यु हो गई।
खरगे का जन्म 1942 में कर्नाटक के बीदर जिले के एक छोटे से गांव वरावट्टी में मपन्ना और सबव्वा के घर हुआ था। प्रियांक बताते हैं कि उस हमले के बाद मेरे पिता और दादा अपनी जान के डर से एक घनी झाड़ी में छिप गए। फिर उन्होंने मेरे दादा के भाई से मिलने का फैसला किया, जो सेना में सेवारत थे और पुणे में तैनात थे। उन्होंने पुणे पहुंचने के लिए बैलगाड़ियों पर लगभग एक सप्ताह की यात्रा की। उनसे मिलने के बाद मेरे दादा-चाचा गुलबर्गा (आधुनिक कलबुर्गी) वापस चले गए थे और नए सिरे से अपना जीवन शुरू किया। एक कपड़ा मिल एमएसके मिल्स में नौकरी पाकर खरगे ने अपनी पढ़ाई पूरी की और उसी कॉलेज से बीए करने के बाद गुलबर्गा लॉ कॉलेज कानून की डिग्री हासिल की।
रजाकार हैदराबाद के निजाम की निजी सेना या मिलिशिया थे, जिन्होंने निजामों के खिलाफ आजादी के लिए लड़ रहे सैकड़ों ‘क्रांतिकारियों’ को उस समय मार डाला, जब भारत अंग्रेजों से आजादी का जश्न मना रहा था। तत्कालीन हैदराबाद के लोग मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन (एमआईएम) के बैनर तले इस अर्धसैनिक बल के खिलाफ लड़ रहे थे।
1920 के दशक में शुरू किया गया MIM पहले मुस्लिम समुदाय के लिए एक सांस्कृतिक और धार्मिक मंच के रूप में शुरू हुआ, लेकिन बाद में लातूर के एक वकील कासिम रिज़वी के नेतृत्व में एक उग्रवादी मोड़ ले लिया। कहा जाता है कि निजाम शासन की रक्षा के नाम पर उसने कई अत्याचार किए और विरोध करने वालों को मार डाला। 1947 में रजाकारों ने हैदराबाद के लोगों से या तो पाकिस्तान में शामिल होने या एक अलग मुस्लिम राज्य बनाने का आह्वान किया।
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