By @ocjain4 –
बचपन से ये फोटो देखते आए हो न …कौन है नाम बता सकते हो….?? ….नहीं न……!! ये है भाई #मतिदास जिन्हें आज ही के दिन 9 नवंबर को आरी से चीर दिया गया था क्यों कि उन्होंने धर्मांतरण यानी मुस्लमान बनने से इनकार कर दिया था भाई मती दास, भाई दयाला और भाई सती दास को गुरु तेग बहादुर की शहादत से ठीक पहले बादशाह औरंगजेब के आदेश के तहत दिल्ली के चांदनी चौक क्षेत्र में मार दिया गया था । भाई मती दास को दो खंभों के बीच बांधकर और दो टुकड़ों में काटकर मार डाला गया था। आज औरंगजेब महान है उसके नाम शहर ओर सड़के है कांग्रेस और उसके सहयोगी औरंगजेब की कब्र पर सजदा कर रहे है ओर मतिदास….?? कोई नाम भी नहीं ले रहा …? मुग़ल बादशाह औरंगजेब ने मंदिर और गुरुद्वारों को तोड़ने और मूर्ती पूजा बंद करवाने के फरमान दिए थे, उसके आदेश के अनुसार कितने ही मंदिर और गुरूद्वारे तोड़े गए , मंदिरों की मूर्तियों को तोड़ कर टुकड़े कर दिए गए और मंदिरों में गायें काटीं गयीं , औरंगज़ेब ने सबको इस्लाम अपनाने का आदेश दे दिया और संबंधित अधिकारी को यह कार्य सौंप दिया। औरंगजेब ने यह हुक्म दिया कि किसी हिन्दू को राज्य के कार्य में किसी उच्च स्थान पर नियत न किया जाये तथा हिन्दुओं पर जजिया (कर) लगा दिया जाय उस समय अनेकों नये कर केवल हिन्दुओं पर लगाये गये। इस भय से अनेकों हिन्दू मुसलमान हो गये। हिन्दुओं के पूजा-आरती आदि सभी धार्मिक कार्य बंद होने लगे मंदिर गिराये गये, मसजिदें बनवायी गयीं और अनेकों धर्मात्मा मरवा दिये गये। उसी समय की उक्ति है कि ‘सवा मन यज्ञोपवीत रोजाना उतरवा कर औरंगजेब रोटी खाता था औरंगज़ेब ने कहा -सबसे कह दो या तो इस्लाम धर्म कबूल करें या मौत को गले लगा लें जब गुरु तेगबहादुर ने इस्लाम धर्म स्वीकार करने से मना कर दिया तो उनको औरंगजेब के हुक्म से गिरफ्तार कर लिया गया था। गुरुजी के साथ तीन सिख वीर दयाला जी, भाई मतीदास और सतीदास भी दिल्ली में कैद थे। औरंगजेब चाहता था कि गुरुजी मुसलमान बन जायें। उन्हें डराने के लिए इन तीनों को तड़पा-तड़पा कर मारा गया; पर गुरुजी विचलित नहीं हुए। औरंगजेब ने सबसे पहले 9 नवम्बर, 1675 को भाई मतिदास को आरे से दो भागों में चीरने को कहा। लकड़ी के दो बड़े तख्तों में जकड़कर उनके सिर पर आरा चलाया जाने लगा। जब आरा दो तीन इंच तक सिर में धंस गया, तो काजी ने उनसे कहा -मतिदास, अब भी इस्लाम स्वीकार कर ले। शाही जर्राह तेरे घाव ठीक कर देगा। तुझे दरबार में ऊँचा पद दिया जाएगा और तेरी पाँच शादियाँ कर दी जायेंगी। भाई मतिदास ने व्यंग्यपूर्वक पूछा – काजी, यदि मैं इस्लाम मान लूँ, तो क्या मेरी कभी मृत्यु नहीं होगी ? काजी ने कहा कि यह कैसे सम्भव है। जो धरती पर आया है, उसे मरना तो है ही। भाई जी ने हँसकर कहा – यदि तुम्हारा इस्लाम मजहब मुझे मौत से नहीं बचा सकता, तो फिर मैं अपने पवित्र हिन्दू धर्म में रहकर ही मृत्यु का वरण क्यों न करूँ ? उन्होंने जल्लाद से कहा कि अपना आरा तेज चलाओ, जिससे मैं शीघ्र अपने प्रभु के धाम पहुँच सकूँ। यह कहकर वे ठहाका मार कर हँसने लगे। काजी ने कहा कि वह मृत्यु के भय पागल हो गया है। भाई जी ने कहा – मैं डरा नहीं हूँ। मुझे प्रसन्नता है कि मैं धर्म पर स्थिर हूँ। जो धर्म पर अडिग रहता है, उसके मुख पर लाली रहती है; पर जो धर्म से विमुख हो जाता है, उसका मुँह काला हो जाता है।कुछ ही देर में उनके शरीर के दो टुकड़े हो गये। अगले दिन 10 नवम्बर को उनके छोटे भाई सतिदास को रुई में लपेटकर जला दिया गया। भाई दयाला को पानी में उबालकर मारा गया। ग्राम करयाला, जिला झेलम (वर्त्तमान पाकिस्तान) निवासी भाई मतिदास एवं सतिदास के पूर्वजों का सिख इतिहास में विशेष स्थान है। उनके परदादा भाई परागा जी छठे गुरु हरगोविन्द के सेनापति थे। उन्होंने मुगलों के विरुद्ध युद्ध में ही अपने प्राण त्यागे थे। उनके समर्पण को देखकर गुरुओं ने उनके परिवार को ‘भाई’ की उपाधि दी थी। भाई मतिदास के एकमात्र पुत्र मुकुन्द राय का भी चमकौर के युद्ध में बलिदान हुआ था। भाई मतिदास के भतीजे साहबचन्द और धर्मचन्द गुरु गोविन्दसिंह के दीवान थे। साहबचन्द ने व्यास नदी पर हुए युद्ध में तथा उनके पुत्र गुरुबख्श सिंह ने अहमदशाह अब्दाली के अमृतसर में हरिमन्दिर पर हुए हमले के समय उसकी रक्षार्थ प्राण दिये थे। इसी वंश के क्रान्तिकारी भाई बालमुकुन्द ने 8 मई, 1915 को केवल 26 वर्ष की आयु में फाँसी पायी थी। उनकी साध्वी पत्नी रामरखी ने पति की फाँसी के समय घर पर ही देह त्याग दी। लाहौर में भगतसिंह आदि सैकड़ों क्रान्तिकारियों को प्रेरणा देने वाले भाई परमानन्द भी इसी वंश के तेजस्वी नक्षत्र थे। किसी ने ठीक ही कहा है – सूरा सो पहचानिये, जो लड़े दीन के हेत पुरजा-पुरजा कट मरे, तऊँ न छाड़त खेत।।