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7 अक्टूबर 2023 को हमास ने इज़राइल पर एक अत्यधिक क्रूर हमला किया था, जिसमें न केवल सैकड़ों निर्दोष लोग मारे गए, बल्कि सैकड़ों अन्य लोगों को बंधक बना लिया गया। इनमें से एक बंधक मिया शे़म हैं, जिनका हाल ही में संयुक्त राष्ट्र में दिया गया बयान, न केवल दुनिया को चौंकाने वाला था, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने मानवाधिकारों और आतंकवाद के खिलाफ ठोस कदम उठाने की आवश्यकता को भी उजागर करता है। मिया शे़म ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए सवाल उठाए कि आखिर संयुक्त राष्ट्र और अन्य मानवीय संगठनों ने उनकी मदद के लिए कदम क्यों नहीं उठाए। उनका यह बयान एक गहरी चिंता और आक्रोश का प्रतीक था, जो संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकार एजेंसियों की निष्क्रियता को लेकर था।
बंधक बनी मिया शे़म का दर्दनाक अनुभव
मिया शे़म, इज़राइल की एक नागरिक, हमास द्वारा बंधक बनाई गईं थीं। जब उन्हें और अन्य इज़राइली महिलाओं को अपहरण कर के हमास ने अपनी हिरासत में रखा, तो मिया शे़म के हाथ में गंभीर चोटें आईं। बावजूद इसके कि उनका हाथ दिन-ब-दिन बिगड़ता जा रहा था, कोई मानवीय संगठन उन्हें मदद देने के लिए आगे नहीं आया। संयुक्त राष्ट्र और रेड क्रॉस जैसी संस्थाओं ने उनकी स्थिति पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, और मिया के अनुसार, उनका इलाज भी नहीं हुआ।
मिया शे़म ने कहा, “ना तो रेड क्रॉस ने मुझे देखा, और ना ही किसी अन्य मानवीय संस्था ने मेरी मदद की, जबकि मेरा हाथ गंभीर रूप से बिगड़ रहा था।” इस बात ने इस सवाल को उठाया कि जब बंधक बने लोग इतनी गंभीर स्थिति में थे, तो ऐसे विश्वस्तरीय संस्थान कहाँ थे जो इन लोगों की मदद कर सकें?
संयुक्त राष्ट्र की निष्क्रियता: सवाल और आरोप
मिया शे़म ने अपने संबोधन में यह भी पूछा कि संयुक्त राष्ट्र कहां था? उन्होंने कहा, “मैं आपको यह सवाल पूछती हूं कि आखिर हम संयुक्त राष्ट्र के लिए क्यों बैठें, यदि यह हमारे सबसे अंधेरे क्षणों में हमारा समर्थन नहीं कर सकता?” उनके शब्द स्पष्ट रूप से यह दर्शाते हैं कि संयुक्त राष्ट्र, जो विश्व शांति और सुरक्षा का प्रहरी होने का दावा करता है, ने अपने कर्तव्यों को ठीक से नहीं निभाया। इस निष्क्रियता ने यह साबित कर दिया कि अक्सर अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं अपने उद्देश्य को भूलकर राजनीतिक और कूटनीतिक दृष्टिकोणों से अधिक प्रभावित हो जाती हैं।
संघर्ष का भयानक पहलू: नरक के भूमिगत तहखाने में बंधक
मिया शे़म ने अपने अनुभवों का विवरण देते हुए कहा कि बंधक बनाए जाने के पचासवें दिन उन्हें नरक की भूमिगत सुरंगों में डाल दिया गया। वहां, उन्हें पांच अन्य इज़राइली महिलाओं के साथ एक छोटे से पिंजरे में बंद कर दिया गया। यह स्थिति न केवल शारीरिक रूप से कठिन थी, बल्कि मानसिक रूप से भी यह पूरी तरह से अपमानजनक थी। मिया शे़म ने अपने अनुभव को साझा करते हुए कहा कि, “मैंने जब घर वापस लौटने के बाद डॉक्टरों से इलाज कराया, तो मुझे यह बताया गया कि मुझे अपने हाथ पर जीवन-रक्षक सर्जरी की आवश्यकता है।”
यह भयानक अनुभव यह दर्शाता है कि जब बंधक बनाए गए लोगों को न केवल शारीरिक यातनाएं दी जाती हैं, बल्कि उनकी मानसिक स्थिति को भी बर्बाद कर दिया जाता है। यह इस बात को और भी स्पष्ट करता है कि हमास द्वारा किए गए इस अत्याचार को न केवल मानवाधिकारों का उल्लंघन माना जाना चाहिए, बल्कि इसे युद्ध अपराधों के रूप में भी देखा जाना चाहिए।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चुप्पी: आतंकवादियों के साथ समझौता?
संयुक्त राष्ट्र और अन्य मानवीय संस्थाएं, जिनकी जिम्मेदारी है युद्धग्रस्त क्षेत्रों में मदद करना और मानवीय संकटों को रोकना, ने इस गंभीर घटना पर मौन क्यों साध लिया? क्या यह चुप्पी इस बात को दर्शाती है कि आतंकवादियों के साथ न कोई ठोस कार्रवाई की जा रही है और न ही बंधक बनाए गए लोगों के प्रति कोई संवेदनशीलता दिखाई जा रही है?
मिया शे़म के बयान ने यह सवाल खड़ा किया है कि क्या अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इज़राइल के नागरिकों के अधिकारों को नजरअंदाज कर दिया है क्योंकि वह एक राजनीतिक मुद्दा बन चुका है? क्या आतंकवादियों द्वारा निर्दोष लोगों को निशाना बनाने का यह रवैया स्वीकार्य है?
मानवाधिकार की उपेक्षा और आंतरिक नीतियां
संयुक्त राष्ट्र और अन्य मानवीय एजेंसियों की निष्क्रियता यह स्पष्ट करती है कि अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार नीतियों में गहरे बदलाव की आवश्यकता है। मिया शे़म ने जो अनुभव साझा किया, वह यह साबित करता है कि हम कभी-कभी राजनीतिक कारणों से मानवाधिकारों की उपेक्षा करते हैं। जिस समय सबसे अधिक जरूरत थी, अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चुप्पी ने उन निर्दोष लोगों की पीड़ा को और बढ़ा दिया जिनका कुछ नहीं किया जा सकता था।
संघर्ष और आतंकवाद के खिलाफ कदम उठाने की आवश्यकता
मिया शे़म के बयान के बाद, यह आवश्यक हो जाता है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय और संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाएं आतंकवादियों के खिलाफ कड़े कदम उठाएं और बंधकों की सुरक्षा के लिए ठोस नीतियां बनाएं। यह समय है कि हम इन स्थितियों में मानवीय सहायता को प्राथमिकता दें और राजनीतिक दृष्टिकोण से हटकर निष्पक्ष रूप से कदम उठाएं।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह समझना होगा कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई केवल एक देश का संघर्ष नहीं है, बल्कि यह पूरी मानवता का संघर्ष है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हम आतंकवाद के खिलाफ खड़े हों और बंधकों के जीवन को बचाने के लिए ठोस कार्रवाई करें।
निष्कर्ष: क्या हमें संयुक्त राष्ट्र पर विश्वास करना चाहिए?
मिया शे़म का संबोधन न केवल उन लोगों के लिए एक सवाल है जो इस संकट का हिस्सा थे, बल्कि यह पूरी दुनिया के लिए एक चेतावनी भी है। यह सवाल उठता है कि क्या हमें ऐसे संगठनों पर विश्वास करना चाहिए जो मानवीय संकटों से निपटने में असफल रहते हैं और जिनकी निष्क्रियता से निर्दोष लोगों को और अधिक कष्ट होता है।
मिया शे़म ने जिस तरह से अपने दर्द और आक्रोश को व्यक्त किया, वह यह दर्शाता है कि आतंकवाद और आतंकवादी संगठनों के खिलाफ लड़ाई में हम सबकी जिम्मेदारी है। अब समय आ गया है कि हम आतंकवादियों के खिलाफ न केवल शब्दों से, बल्कि ठोस कदमों से खड़े हों और उन निर्दोष बंधकों के जीवन को बचाने के लिए एकजुट हों, जिन्हें बर्बर आतंकवादी अपनी जघन्य हरकतों का शिकार बना रहे हैं।
अंत में, यह हम सभी की जिम्मेदारी है कि हम इन कृत्यों की निंदा करें और मानवता के लिए खड़े हों।
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